Wednesday, May 4, 2011

छब्बीस साल

कई पड़ाव बीते
जलते-सुलगते
भीगते-गमकते

सूखी जमीन
धूल उड़ाती
गीला मन
जीवन बरसाता

समय चलता रहा
पड़ाव गुजरते रहे

पर इन छब्बीस पड़ावों के बाद भी
आईने का यह चेहरा
जिसे लोग पहचानते हैं
मुझे अजनबी लगता है

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