Wednesday, May 4, 2011

जागने और सोने के बीच

हर क्षण
झरता,
इन क्षणों के बीच
कुछ तो गिरा
छन् से
किजिस की आवाज
बेंध गयी
पर हाय!
फिर पता न चला

यह पता न चलना
एक छल है
धोखा
एक एहसास का मरना

खाने-पीने-सोने
हँसने-गाने के बीच
कुछ छूट जाता है

सब स्पष्ट है
सच भी,
छल भी।

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